कोटा में 24 दिन में 77 बच्चों की मौत, क्या सो रही है गहलोत सरकार

कोटा में 24 दिन में 77 बच्चों की मौत, क्या सो रही है गहलोत सरकार

सेहतराग टीम

जयपुर शहर के कोटा के जे. के. लोन (J K Lon ) अस्पताल में पिछले 48 घंटों में 10 बच्चों की मौत हुई है और वहीं 24 दिनों में 77 बच्चों की मौत हुई है।  खास बात ये है कि एक दो मीडिया हाउस को छोड़कर  इन मौतों पर नेशनल मीडिया ने पूरी चुप्पी साध ली है। वैसे मामले की जांच करने के लिए अस्पताल द्वारा गठित जांच कमेटी ने मंगलवार को लापरवाही से इंकार करते हुए कहा कि अस्पताल के संसाधन और उपकरण ठीक से काम कर रहे हैं।

अस्पताल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले कुछ दिनों में जिन 10 बच्चों की मौत हुई, वे बेहद गंभीर और वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। अस्पताल ने यह भी दावा किया कि 23 और 24 दिसंबर को मरने वाले पांच नवजात शिशु सिर्फ एक दिन के थे और उन्हें भर्ती होने के कुछ घंटों के भीतर अंतिम सांस ली। रिपोर्ट में कहा गया है कि वे हाइपोक्सिक इस्केमिक एन्सेफैलोपैथी से पीड़ित थे। जब मस्तिष्क तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा कम या बाधित होती है, तो मस्तिष्क क्षति होती है। यह तब होता है क्योंकि तंत्रिका तंत्र को ठीक से काम करने के लिए ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है, और यदि यह लंबे समय तक अनुपस्थित है, तो तंत्रिका कोशिकाएं घायल हो जाती हैं और मर सकती हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 23 दिसंबर को गंभीर निमोनिया के कारण एक पांच महीने के बच्चे मौत हो गयी, जबकि एक साल के बच्चे की एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) से मौत हो गयी। इसके अलावा दिन का तीसरा शिकार एक महीने का बच्चा हुआ जिसकी मौत जटिल सियानोटिक जन्मजात हृदय रोग से हुई। इनके अलावा 24 दिसंबर को दो महीने की मासूम बच्ची आकांक्षा निमोनिया और ढेड़ साल के बच्चे की सीजर डिसऑर्डर से मौत हो गयी।

वहीं इन मौतों के बारे में अस्पताल सुपरिन्टेन्डेन्ट डॉ एच एल मीणा का कहना है कि, हमने जांच के बाद पाया है कि सभी 10 बच्चों की मौतें सामान्य हैं, ये मौतें अस्पताल की लापरवाही के कारण नहीं हुई हैं।

अस्पताल के प्रमुख अमृत लाल बैरवा (बाल रोग विशेषज्ञ) का कहना है कि बच्चों को गंभीर स्थिति में अस्पताल में लाया गया था। उन्होंने आगे कहा कि  राष्ट्रीय एनआईसीयू (NICU) के रिकॉर्ड के अनुसार 20 फीसदी बच्चों की मौत होना मंजूर करने योग्य है। कोटा में मृत्यु दर 10-15 फीसदी है जो खतरनाक नहीं है क्योंकि ज्यादातर बच्चों को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। नाजुक हालत में मरीज बूंदी, बारां, झालावाड़ और मध्य प्रदेश से भी आते हैं। एक से तीन बच्चे और नवजात शिशुओं की यहां रोज ही मौत होती है।

अब सवाल यह है कि कुछ महीने पहले ही गोरखपुर और बिहार जैसे प्रदेशों में भी बच्चों की मौत हुई थी। जिसे लेकर मीडिया हो या पक्ष से लेकर विपक्ष तक हाहाकार मचा हुआ था। लेकिन वहीं 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत हो गयी लेकिन किसी को कोई सुध नहीं है। अस्पताल ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि उसकी कोई गलती नहीं है। इन मासूमों की मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है, प्रशासन या अस्पताल?

(खबर एवं फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इंडिया)

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